दीप जलाना ऐसे की किसी के अरमान ना जलने पाएँ...
इस फैले हुए अंधेरे मे खुद को जला कर किसी के अरमान को प्रकाश देना..
जिससे आने वाला भारत अंधेरे मे ना पैदा हो...
खुद को इतना जलाना की रोशनी उन घरो मे भी हो...
जिन घरों की दीवारें ही अंधेरो से बनी हुई लगती है...
दीपक की रोशनी इतनी हो की सूरज समझकर, उठ जाए सोए हुए..
Is title ka main uddesh youa bharat ki awaj ko uthana hai,jisse aane wala bharat samridh aur khushhal bharat ho....
Sunday, October 31, 2010
Saturday, October 30, 2010
भारतीय नारी...
नारियाँ कभी बहन बनकर भाई का साथ देती हैं...
नारियाँ कभी पत्नी के रूप मे पति का साथ देती हैं...
नारियाँ कभी माँ के रूप मे एक बेटे को पालती है...
जितना त्याग एक बहन भाई के लिए,
जितना त्याग एक पत्नी पति के लिए
जितना त्याग एक माँ बेटे के लिए करती है.
अगर इतना ही त्याग एक भाई अपने बहन के लिए
अगर इतना ही त्याग एक पति अपने पत्नी के लिए
अगर इतना ही त्याग एक बेटा अपने माँ के लिए कर दे...
तो अगले दिन की सुबह...
स्वर्ग धरती पर होगा...
नारियाँ कभी पत्नी के रूप मे पति का साथ देती हैं...
नारियाँ कभी माँ के रूप मे एक बेटे को पालती है...
जितना त्याग एक बहन भाई के लिए,
जितना त्याग एक पत्नी पति के लिए
जितना त्याग एक माँ बेटे के लिए करती है.
अगर इतना ही त्याग एक भाई अपने बहन के लिए
अगर इतना ही त्याग एक पति अपने पत्नी के लिए
अगर इतना ही त्याग एक बेटा अपने माँ के लिए कर दे...
तो अगले दिन की सुबह...
स्वर्ग धरती पर होगा...
Friday, October 29, 2010
समाज..समाज...
जब दर्द को बटना चाहा और ही दर्द पाया है,
जब किसी को अपना समझा है तो अपने को हर मोड़ पे अकेला ही पाया है,
जब तक समाज को नही जनता था तब यही सोचता था कुछ अच्छी चीज़ होगी,
लेकिन जब से समाज को समझा हूँ, अपने को और भी अकेला पाया है,
समाज से पूछता हूँ,
समाज को दर्द बाँटने से ज़्यादा
दर्द देने का हक़ किसने दिया है
समाज को दर्द होता है
जब कोई बढ़ता है...
समाज को दर्द होता है
जब कोई आगे निकलता है...
लेकिन समाज को दर्द तब क्यो नही होता है
जब रात को बच्चा अपनी माँ से खाना माँगता है
माँगते-२ बच्चा सो जाता है
तब समाज एक गहरी नींद मे सो रहा होता है...
लेकिन वही माँ जब अपने बच्चे को भूखा सोते देखकर
जब कुछ करती है तो समाज की गहरी नींद टूट जाती है...
वही बच्चा जब बड़ा होता है
और समाज से जबाब माँगता है
तो समाज उसे पागल घोषित कर देता है
यही समाज की सच्चाई है...
समाज मे रहना है
तो एक माँ को अपने बच्चे को भूखा देखकर चुप रहना होगा...
समाज के सामने माँ की ममता को घुटनो के बल चलना होगा..
समाज समाज...
जब किसी को अपना समझा है तो अपने को हर मोड़ पे अकेला ही पाया है,
जब तक समाज को नही जनता था तब यही सोचता था कुछ अच्छी चीज़ होगी,
लेकिन जब से समाज को समझा हूँ, अपने को और भी अकेला पाया है,
समाज से पूछता हूँ,
समाज को दर्द बाँटने से ज़्यादा
दर्द देने का हक़ किसने दिया है
समाज को दर्द होता है
जब कोई बढ़ता है...
समाज को दर्द होता है
जब कोई आगे निकलता है...
लेकिन समाज को दर्द तब क्यो नही होता है
जब रात को बच्चा अपनी माँ से खाना माँगता है
माँगते-२ बच्चा सो जाता है
तब समाज एक गहरी नींद मे सो रहा होता है...
लेकिन वही माँ जब अपने बच्चे को भूखा सोते देखकर
जब कुछ करती है तो समाज की गहरी नींद टूट जाती है...
वही बच्चा जब बड़ा होता है
और समाज से जबाब माँगता है
तो समाज उसे पागल घोषित कर देता है
यही समाज की सच्चाई है...
समाज मे रहना है
तो एक माँ को अपने बच्चे को भूखा देखकर चुप रहना होगा...
समाज के सामने माँ की ममता को घुटनो के बल चलना होगा..
समाज समाज...
Thursday, October 28, 2010
दो मिनट...
आज भारत की चाहे कहे दशा या दुर्दशा देखकर हर भारतीय के ज़बान पे कुछ ना कुछ आता है लेकिन वो दूसरो के खिलाफ ही आता है...अगर ऐसा होता है तो होना नही चाहिए क्योंकि हमारी भी नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है भारत की दशा या दुर्दशा सुधारने की,किसी के उपर आरोप-प्रत्यारोप करके भारत की दशा को सुधरा नही जा सकता है...आज हम लोगो की दशा ये हो गयी की हम आज़ाद भारत मे आज़ादी खोज रहे है...दो मिनिट अपने देश के लिए सोंचो...इतिहास के पन्नो मे सीमटते हुए भारत को बचाने के लिए आगे बड़े और एक नया इतिहास लिखे...
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