कलम ने लिखना चाहा तो मुझसे चुपके से बोली की मैं क्या लिखू
मैने कहा तू चाहती है क्या लिखना कलम ने मुस्कुरा कर कहा
मैने आज तक जो चाहा है उसे लिखने वाले ने लिखने कहा दिया है...
सब ने अपनी तन्हाई और अपने गम लिखे है
किसी ने मुझे अपने गम लिखने कहा दिए है...
मैने अपने को स्याही मे डूबा के किसी के गम को
जैसा लिखा है क्या मेरे भी गम और तन्हाई को
लिखने वाले तू अपने को स्याही मे डुबो के लिख सकता है
लेकिन कलम को कोई उत्तर नही मिला
और आज भी कलाम यही सवाल करती है
और फिर दूसरे के गम और तन्हाई को लिखना शुरू कर देती है...
Is title ka main uddesh youa bharat ki awaj ko uthana hai,jisse aane wala bharat samridh aur khushhal bharat ho....
Thursday, December 15, 2011
Tuesday, February 1, 2011
मैने जो सीखा है...
अपने गम को छुपा के रखना सीखो,
लोग गम का मज़ाक बना डालेंगे.
जिंदगी मे खुद के पैरो पे लड़ना सीखो,
लोग विकलांग बना डालेंगे.
अंधेर मे खुद रास्ते खोजना सीखो,
लोग जलते हुए दीपक को भी बुझा डालेंगे
यहा बहुत ही कम है जो गम मे साथ देना,
रास्ते मे अपने पैरो का सहारा देना,
अंधेरे मे खुद को जला के रास्ता दिखाना सीखे है.
लोग गम का मज़ाक बना डालेंगे.
जिंदगी मे खुद के पैरो पे लड़ना सीखो,
लोग विकलांग बना डालेंगे.
अंधेर मे खुद रास्ते खोजना सीखो,
लोग जलते हुए दीपक को भी बुझा डालेंगे
यहा बहुत ही कम है जो गम मे साथ देना,
रास्ते मे अपने पैरो का सहारा देना,
अंधेरे मे खुद को जला के रास्ता दिखाना सीखे है.
Sunday, January 23, 2011
जिंदगी पत्थर बन गयी...
जिंदगी मे इतनी ठोकरे है लगी की
जिंदगी ना बदली पर पत्थर बदल गया.
जब ठोकरे लगती थी तब दर्द का ऐहसास होता था
अब ना दर्द होता है ना उसका ऐहसास
शायद जिंदगी पत्थर बन गयी और पत्थर जिंदगी
अब शायद इस पत्थर को कोई मूर्तिकार
काट कर एक नया रूप दे
और ये मूर्ति ही शायद ही कुछ कर जाए
जो ठोकर लगने के पहले एक जिंदगी नही कर सकी...
जिंदगी ना बदली पर पत्थर बदल गया.
जब ठोकरे लगती थी तब दर्द का ऐहसास होता था
अब ना दर्द होता है ना उसका ऐहसास
शायद जिंदगी पत्थर बन गयी और पत्थर जिंदगी
अब शायद इस पत्थर को कोई मूर्तिकार
काट कर एक नया रूप दे
और ये मूर्ति ही शायद ही कुछ कर जाए
जो ठोकर लगने के पहले एक जिंदगी नही कर सकी...
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