जिंदगी मे इतनी ठोकरे है लगी की
जिंदगी ना बदली पर पत्थर बदल गया.
जब ठोकरे लगती थी तब दर्द का ऐहसास होता था
अब ना दर्द होता है ना उसका ऐहसास
शायद जिंदगी पत्थर बन गयी और पत्थर जिंदगी
अब शायद इस पत्थर को कोई मूर्तिकार
काट कर एक नया रूप दे
और ये मूर्ति ही शायद ही कुछ कर जाए
जो ठोकर लगने के पहले एक जिंदगी नही कर सकी...
v v nice poem god bless u
ReplyDeleteSunder.
ReplyDelete