Saturday, December 18, 2010

समाज के ठेकेदार...

ऐ समाज के ठेकेदारो!!!
इंसानियत अभी जिंदा है
उसपे अभी कफ़न मत डालो
डालना है तो तेल दीपक मे डालो
तुम्हारे कालेपन से जो अंधेरा फैला है
वो शायद मिट जाए...
जलते हुए घरो को और मत जलाओ
जलाना ही है तो बुझे हुए चूल्हो को जलाओ
जहा से आज भी आती कराहती हुई आवाज़
उन घरो पे तुम्हारी नज़रे क्यो नही पहुँची
लेकिन दस्तूर ही कुछ ऐसा है की
तुम्हारी नज़रे ठहरती ही वाहा है
जहा सब कुछ बसा है...
क्योंकि बसाने से ज़्यादा तुम्हे उजाड़ने मे मज़ा आता है...

4 comments:

  1. bahut khoob vivek ji bahut karari chot ki hats of u

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  2. बिलकुल सही बात कही कि :
    जलते हुए घरो को और मत जलाओ
    जलाना ही है तो बुझे हुए चूल्हो को जलाओ

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  3. आज के नेताओं की यही परिभाषा है !
    Ratnesh

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