ऐ समाज के ठेकेदारो!!!
इंसानियत अभी जिंदा है
उसपे अभी कफ़न मत डालो
डालना है तो तेल दीपक मे डालो
तुम्हारे कालेपन से जो अंधेरा फैला है
वो शायद मिट जाए...
जलते हुए घरो को और मत जलाओ
जलाना ही है तो बुझे हुए चूल्हो को जलाओ
जहा से आज भी आती कराहती हुई आवाज़
उन घरो पे तुम्हारी नज़रे क्यो नही पहुँची
लेकिन दस्तूर ही कुछ ऐसा है की
तुम्हारी नज़रे ठहरती ही वाहा है
जहा सब कुछ बसा है...
क्योंकि बसाने से ज़्यादा तुम्हे उजाड़ने मे मज़ा आता है...
great
ReplyDeletebahut khoob vivek ji bahut karari chot ki hats of u
ReplyDeleteबिलकुल सही बात कही कि :
ReplyDeleteजलते हुए घरो को और मत जलाओ
जलाना ही है तो बुझे हुए चूल्हो को जलाओ
आज के नेताओं की यही परिभाषा है !
ReplyDeleteRatnesh