Sunday, November 21, 2010

आधूरी दोस्ती...

दोस्ती चीज़ क्या है समझ मे नही आता
कभी तन्हाई दूर करने के लिए दोस्ती करते थे
आज दोस्ती कर के तन्हाई मे रहते है
सोचते थे कभी की दोस्ती करके
टूटे हुए सपनो को सजाने वाला हमदर्द मिल जाएगा
कांटो भरे रास्ते पर चलने वाला हमसफ़र मिल जाएगा
दोस्ती हुई हमसफ़र और हमदर्द मिल
ना सोचा था कभी अब तन्हाई होगी ना अकेलापन होगा
मैने भी सोचा साल भर बसंत ही रहेगा
लेकिन प्रक्रित के चक्र की तरह बसंत आया और चला गया
मैने भी प्राकृत का विरोध कर के बस बसंत ही चाहा
लेकिन मैं शायद नादान था की प्राकृत किसी के मोह मे नही आती है
और दोस्त रूठा...
मुझे फिर पाथरीले और कांटो भरे रास्तों पर अकेला
छोड़ कर चल दिया...
जिसने कभी चलने की राह दिखाई,
जिसने कभी उंगली पकड़ के चलना सिखाया,
वही कहता है की तुम ग़लत रास्ते पे चले गये हो...
और मुझे फिर वही तन्हाई और काँटे भरे रास्ते मिले..
और मैं आज भी उस रास्ते पर खड़े होकर
उस दोस्त का इंतजार कर रहा हूँ...
दोस्त मिल गया तो मंज़िल तक पहुँचूगा
नही मेरे दोस्त के बिछड़ने की जगह ही मेरी मंज़िल होगी...
प्राकृत कहती है की बसंत फिर आएगा
और मैं उस बसंत रूपी दोस्त के इंतजार मे...

4 comments:

  1. Really yr, doston ki yaad dur rahkar aur jyada aati hai.

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  2. SO NICE,
    aisa lagta hai tum kisi ko miss kar rahe ho.
    sab to umhare pass hai phir.

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  3. sahi he insaan ata akela he aur jata bhi akela hi he.

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