अगर साथ दीपक को तूफ़ानो का मिल जाए
अगर साथ खुद को गैरो का मिल जाए
अहसास ना होगा अंधेरे और पराएपन का
फिर रोशनी की रोशनी बुझ जाएगी
अपनो के ना होने का ऐहसास ना रह जाएगा
माँ की ममता का ऐहसास कहा होगा
फिर दीपक लड़ने की ललक खो देगा
हम अपनो को पाने की ज़िद छोड़ देंगे
फिर किस को पाने के लिए हम लड़ेंगे
किस अंधेरे को ख़तम करने के लिए दीप जलाएँगे
और ये कलम किस की तन्हाई और अंधेरे को को सादे कागज पे लिखेगी
सोचो हम कितने खाली हो जाएँगे...
nice
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है . बधाई .
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...आगे बढिए ...शुभकामनायें
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